जीएसटी काउंसिल विचार करेगी? पेट्रोल-डीजल की बढ़ रही कीमत को घटाने में वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन ने कहा उस तरह सरकार धर्मसंकट क्यों अनुभव कर रही है। उसे समझना मुश्किल है। तब चार राज्यों ने डय़ूटी घटाने का मार्ग दिखाया है। राजस्थान में इस इúधन पर वैट डय़ूटी 2 प्र. श. घटाने की पहल की। उसके बाद मेघालय ने डय़ूटी में सबसे अधिक कमी घोषित की है। विधानसभा के चुनाव जहां होने वाले हø उस प. बंगाल और असम में भी डय़ूटी घटाई है। अभी तक भाजपा के किसी राज्य अथवा केद्र सरकार ने यह पहल क्यों नहीं की इसका आकार्य उनके प्रशंसकों को भी है। प्रधामंत्री नरेद्र मोदी से लेकर वित्त मंत्री और पेट्रोलियम मंत्री धर्मेद्र प्रधान ने इúधन के बढ़ रहे भाव के लिए अलग-अलग कारण बताया है लेकिन किसी ने आश्वासन नहीं दिया है कि सरकार डय़ूटी घटाएगी। जनता को इस इúधन के भाव बढ़ने के लिए अंतरराष्ट्रीय कारण या पिछली सरकार की असमर्थता के बारे में जानने में रुचि नहीं है। उसे जितने आलू, प्याज के बढ़ते भाव प्रभावित करते हø उतने ही पेट्रोल-डीजल के बढ़ते भाव प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हø। सरकार भले इस समय क्रूड तेल के उत्पादक देशों पर दोष मढ़े लेकिन लॉकडाउन की घोषणा के बाद क्रूड तेल के अंतरराष्ट्रीय भाव घट रहे थे तब सरकार ने डय़ूटी बढ़ाकर भाव गिरावट का लाभ उपभोक्ताओं तक पहुंचने नहीं दिया। अब पेट्रोल-डीजल की भाव वृद्धि के कारण रिटेल मुद्रास्फीति भी बढ़ने की तैयारी में है तब भी सरकार डय़ूटी में राहत देने के बारे में विचार नहीं कर रही है। पूर्व की सरकार की तुलना में वर्तमान मोदी सरकार का वित्तीय अनुशासन के बारे में उज्ज्वल प्रदर्शन रहा है। कोरोना महामारी से राष्ट्र को आर्थिक और सामाजिक बर्बादी से बचाने के लिए सरकार ने राजकोषीय घाटा भी बढ़ने की परवाह नहीं की। आय बढ़ने के मार्ग सीमित होने पर एक्साइज डय़ूटी की ऊंची दर बनाए रखने का प्रलोभन किसी भी सरकार को होगा। इसके बावजूद जनता के विशाल हित में कभी आर्थिक हितों के साथ समझौता करना पड़े तो करना चाहिए और वह भी यथाशीघ्र। जीएसटी काउंसिल की आगामी मीटिंग चार मार्च को होने वाली है। उसमें भी यह मुद्दा एजेंडा पर नहीं है लेकिन काउंसिल का अध्यक्ष होने के नाते वित्त मंत्री को पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के अंतर्गत लाने का प्रस्ताव शुरू करने से कोई रोक नहीं सकता। इस बारे में राज्य भी केद्र सरकार के साथ परस्पर मतभेद को भूलकर विशाल हित में निर्णय ले, यह इच्छनीय है।
पीएलआई स्कीम कल्पवृक्ष के समान चीन-भारत का द्विपक्षी व्यापार वर्ष 2020 में 77.7 अरब डालर का हुआ । वह अमेरिका को पीछे रखकर भारत का सबसे बड़ा व्यापारी भागीदार बना, उसका बहुतों को आकार्य है। भारत सरकार के चीनी माल पर निर्भरता घटाने के अनुरोधों तथा सरकार के `मेक इन इंडिया' अभियान के संदर्भ में भारत के चीन के साथ बढ़ते व्यापार का व्यापक परिप्रेक्ष्य में मूल्यांकन करना चाहिए। सरकार एक ओर चीन के साथ सीमा तनाव कम करने के लिए कदम उठा रही है। चीन के दर्जनभर एप पर प्रतिबंध लगाया गया और दूसरी ओर टेलीकाम से लेकर रेल, बिजली क्षेत्र और अन्य उद्योगों के विकास के लिए आवश्यक यंत्र सामग्री का आयात चीन से बढ़ाया है। मतलब साफ है कि सरकार अनावश्यक आयात बंद कर ऐसे आयात को प्रोत्साहन देगी जो स्थानीय उद्योगों का विकास करे। इसके साथ सरकार ज्यादा उद्योगों को प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेन्टिव (पीएलआई) स्कीम के तहत ला रही है। उसका यह व्यूह चीन को समझ में आया है। उसे वास्तविकता समझ में आयी है कि भारत के साथ सीमा विवाद का परिणाम उसे भारत के साथ के व्यापारी संबंध में दीर्घकाल में नुकसान कराएगा। सरकार उद्योगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए दीर्घकालीन जो कदम उठा रही है, उससे चीन पर निर्भरता उत्तरोत्तर घटती जाएगी। मोबाइल फोन के लिए प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेन्टिव (पीएलआई) स्कीम को सफलता मिलने के बाद सरकार ने उसे दवा और आईटी हार्डवेयर उद्योग के लिए लागू करने की घोषणा की है। इस उद्योग को आयात निर्भर से आत्मनिर्भरता की ओर मोड़ने का सरकार का यह कदम देश की औद्योगिक सुरक्षा के लिए अति जरूरी है।
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