हमारे संवाददाता
नई दिल्ली । उन्होंने कहा कि 1991 के बाद गैर कृषि क्षेत्र में आर्थिक सुार तो हुआ बहरहाल कृषि क्षेत्र लगातार पिछड़ता गया।
खेतीहर मजदूरों और औद्योगिक मजदूरों की मजदूरी में फर्क बढता गया।सब्सिडी अनाज की खेती पर अधिक दी गई।बहरहाल विकास दर बढाने में मत्स्य क्षेत्र की भागीदारी अधिक है।उन्होंने कृषि उपज मंडियों की हालत राज्यों के बनाए मंडी कानून से ही खराब हो गई है।मंडियों पर सीमित लोगों का एकाधिकार हो गया।उप के भाव मुट्ठीभर लोग मिलकर तय करने लगे।ऐसे में किसानों का लाभ मिलना मुश्किल ही था।ई-नाम की शुरुआत हुई बहरहाल इसका विस्तार नहीं हो पाया।जिससे इसका पूरा उपयोग नहीं हो सका।ऐसे में उप समिति इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करेगी।इस बैठक में उप समिति की तरफ से कहा गया कि कृषि क्षेत्र में निवेा नीं बढने से हालात नाजुक हो रहे है ।ऐसे में इस क्षेत्र में निवेश को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।गैर कृषि क्षेत्र में निवेा की रफ्तार 36 प्रतिशत है वहीं कृषि क्षेत्र में वास्तविक निवेा की दर महज तीन प्रतिशत है।इसमें निजी क्षेत्र को शािमल करने की जरुरत है।जिसको लेकर कृषि क्षेत्र के कानून में सुधार किए जाएंगे।उन्होंने कहा कि जिन राज्यों में ठेके पर खेती का प्रावधान है वहां निवेश आ रहा है।