राजकोट। गुजरात में किसानों ने कपास की दो पिकिंग करने के बाद हाथ पीछे खींच लिए हैं एवं अब उसे उखाड़कर गेहूं,चना और सरसों की बोआई कर रहे हैं। कपास की फसल में कीट लगने से अब किसानों को अधिक रिटर्न मिलने की उम्मीद दिखाई नहीं दे रहे हैं जिसकी वजह से वे अब रबी फसलों की ओर मुड़ रहे हैं। बता दें कि गुजरात में कपास की फसल में पिंक बॉलवर्म के मध्य अक्टूबर में हुए हमले से कपास का उत्पादन अनुमान घटता दिखाई दे रहा था।
किसानों का कहना है कि कपास की दो बार पिकिंग हुई है लेकिन पिंक बॉलवर्म के हमले की वजह से अब कपास की फसल में दम नहीं है। अतब् इसे उखाड़कर रबी फसलों की बोआई करना ज्यादा फायदेमंद है। गुजरात के सौराष्ट्र इलाके में कपास की उपज पहले एवं दूसरे राउंड में लगातर घटी है। किसानों का कहना है कि लागत की दृष्टि से देखें तो शीतकालीन फसलों की ओर मुड़ना फायदेमंद है। कपास की पिंकिग लागत एवं बाजार में मिलने वाले भाव में अनुरुपता नहीं होने से किसानों को घाटा है। ऐसे में किसान कपास की जगह दूसरी रबी फसलें मसलन गेहूं,सरसों एवं चना को पसंद कर रहे हैं। बता दें कि सौराष्ट्र के 11 जिलों में 15.35 लाख हैक्टेयर में कपास की बोआई हुई थी और अधिकतर जिलों की यही कहानी है। गुजरात में कपास की बोआई 22.79 लाख हैक्टेयर में हुई जो पिछले साल से 3.89 लाख हैक्टेयर कम थी। हालांकि,कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीएआई) ने पिंक बॉलवर्म से चालू कपास फसल वर्ष में किसी तरह का प्रतिकूल असर पड़ने की संभावना से इनकार किया है।
सीएआई के प्रेसीडेंट अतुल गणात्रा का कहना है कि कपास की फसल में किसी नुकसान को लेकर घबराहट की जरुरत नहीं है। कपास की फसल को कोई बड़ा नुकसान होते नहीं दिख रहा है। चालू सीजन के पहले दो महीनों में कपास की आवक रिकॉर्ड रही हैं। नवंबर अंत तक कॉटन की आवक लगभग 90 लाख गांठ (प्रति गांठ 170 किलोग्राम) रहने की संभावना है जो पिछले कई सालों में एक रिकॉर्ड होगा। इसका अर्थ होगा कि अनुमानित फसल का 25 फीसदी सीजन के पहले दो महीनों में आना। आम तौर पर पहले दो महीने में 15-20 फीसदी फसल आती है। कपास की आवक के आंकडें देखे तो सोमवार को तीन लाख गांठ की आवक हुई जिसमें से उत्तर भारत में 55 हजार गांठ,गुजरात में 65 हजार गांठ,महाराष्ट्र में 62 हजार गांठ एवं तेलंगाना में भी 62 हजार गांठ कपास की आवक हुई। गणात्रा का कहना है कि किसान अपनी उपज 4000-5000 रुपए प्रति क्विंटल पर नहीं बेच रहे थे क्योंकि वह दाम काफी नीचे था। अब भाव बढ़कर 5000-6000 रुपए प्रति क्विंटल हो गए है जो तेजी के सेंटीमेंट को सपोर्ट कर रहे हैं। किसान अब अपनी फसल बेचने के लिए बाजार में आ रहे हैं।
भारत में वर्ष 2020-21 में कपास का रकबा 129.57 लाख हैक्टेयर रहने का अनुमान है एवं केंद्र सरकार के पहले अग्रिम उत्पादन अनुमान के मुताबिक उत्पादन 371 लाख गांठ (प्रति गांठ 170 किलोग्राम) रहने की संभावना है। हालांकि,अक्टूबर के तीसरे सप्ताह में हुई बारिश से कुछ इलाको में नुकसान होने की खबर है जिससे कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने यह अनुमान 356 लाख गांठ जताया है।
कीट लगने से गुजरात में किसानों ने कपास पिकिंग रोकी
